Menu

वर्तमान परिदृश्य और बच्चों की परवरिश

15 साल के रोहन की माँ बहुत परेशान है क्योंकि वह कभी भी किसी कार्य के लिए थैंक यूँ नहीं कहता किसी को भी,ना ही अपनी गलती के लिए कभी सॉरी कहता है। हालांकि रोहन पढ़ाई में बहुत होशियार है लेकिन उसका व्यवहार ठीक नहीं है रोहन की मां को उसके इस व्यवहार पर बहुत दुःख होता है और उन्हें समझ नही आता की आखिर गलती कहाँ हो गई।
अच्छी से अच्छी परवरिश देने की कोशिश की थी रोहन को उसके माता पिता ने लेकिन फिर भी आज उसके बेरुखे व्यवहार को देख वे लोग बहुत चिंतित होते है। वो चाहते थे की बड़ा होकर रोहन कामयाबी पाने के साथ ही एक बेहतर इंसान बने।रोहन के माता पिता की ही तरह आज हर माता पिता की यही चाह है की उनका बच्चा कामयाब हो और अच्छा इंसान हो।
आज जहाँ एकल परिवार की संख्या ज्यादा है और माता पिता दोनों ही जॉब करते है ऐसे में बच्चें को समय बहुत कम दे पाते है। बच्चे की सही परवरिश को लेकर कई सवाल भी उनके मन में होते है। इस वजह से स्कूल पर बच्चों की पढ़ाई के साथ साथ उनके सामाजिक विकास की भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है। खासकर प्ले स्कूलों पर क्योकि प्ले स्कूल बच्चों की नींव होते है और नींव मजबूत होगी तो इमारत भी मजबूत ही बनेगी।
माता पिता प्ले स्कूल का चयन करते समय सारी सुख सुविधाएं देखते है लेकिन सभी सुविधाओं के साथ साथ उन्हें यह भी देखना चाहिए की प्ले स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ क्या बच्चें का सामाजिक विकास किया जाएगा? क्या बच्चें को व्यवहारिक ज्ञान दिया जाएगा? क्या बच्चा वहां मूल्यों को भी सीखेगा?
ये एक महत्वपूर्ण सवाल है क्योंकि बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते है उन्हें प्रारम्भ में ही जैसा आकार दिया जाता है जैसे वातावरण में गढ़ा जाता है वे वैसा ही आकार ले लेते है।
बहुत छोटी छोटी सी सीख होती है किसी भी गलती के लिए तुरंत सॉरी कहना लेकिन ये बात बड़े होकर उन्हें सिखाती है की गलती होने पर क्षमा मांगने से परहेज न करो।
किसी के प्रति कृतज्ञता का भाव लाना छोटी सी उम्र में बहुत आसानी से बच्चों को सिखाया जा सकता है उसे थैंक यूँ कह कर या अपने क्लासमेट को प्यार से गले लगाकर उसे एक स्माइल देकर।आपके क्लासमेट ने आपको अपना टिफिन शेयर किया तो आप भी करो, आपके फ्रेंड को लिखने के लिए पेंसिल चाहिए क्योंकि वह अपनी पेंसिल घर भूल आया और आपके पास एक एक्स्ट्रा पेंसिल है तो आप अपनी पेंसिल शेयर कर लो अपने क्लासमेट से। आज आप घर जाकर मम्मी और पापा को थैंक यूँ कहना क्योकि वो आपके लिए कितना कुछ करते है तो आपको भी थैंक यूँ कहना चाहिए ना उन्हें। आज घर जाकर दादी और दादाजी के छोटे छोटे काम में आप हेल्प करना उनका चश्मा ढूंढकर दे देना और दादीजी के साथ कुछ समय बिताना उनसे बाते करना।ये छोटी छोटी बातें बच्चों के कोमल मन पर गहरा असर करती है और उन्हें वैसा ही इंसान बनाने की दिशा में अग्रसर करते है।
हम पर्यावरण की बड़ी बड़ी बातें करते है लेकिन हम क्या अपने बच्चों को प्रारम्भ से इसकी सीख देते है? बच्चों से उनके हाथों से मिट्टी में बीज डलवाकर मिट्टी से उनको खेलने देने से,मिट्टी में उनके कपड़ो को खराब होने देने से उनकी जड़े इस मिट्टी से जुड़ती है।वो कृतज्ञ हो पाएंगे बड़े होकर एक किसान के प्रति जो मिट्टी में काम करके हमारे लिए फसल उगाता है और पेड़ के,हरियाली के महत्व को समझेंगे। हमें उन्हें बताना होगा की मूंगफली और गाजर जमीन के ऊपर नहीं जमीन के अंदर पैदा होती है। प्रकृति से अपने मूल्यों से संस्कारो से उन्हें जोड़ना होगा।
उनको हमें सिखाना होगा की जानवर सिर्फ चिड़िया घर में नहीं होते जानवर जंगल में होते है यही उनका घर है इसलिए हमें जंगलों को बचाना होगा पेड़ो को बचाना होगा।
उनकी कहानियों में प्रिंस या क्वीन नहीं लोमड़ी खरगोश और चीते को शामिल करना होगा उनके महत्व को उन्हें समझाना होगा।
हमें उन्हें नदियों का महत्व समझाना होगा पानी की बचत सिखानी होगी।
ये सब बातें माता पिता तो सिखाए ही लेकिन साथ ही प्ले स्कूल और स्कूल का चयन करते समय इस बात को जरूर देखें की क्या वहां पर इन सभी के लिए कुछ किया जाता है क्या बच्चों को इस तरह की भी शिक्षा दी जाती है क्या उनके व्यवहार में परिवर्तन करने के लिए कुछ कोर्स के अलावा सिखाया जाता है।
बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना, बड़ो का आदर करना ये सब बहुत साधारण सीख है लेकीन आजकल बच्चे नहीं सीखते क्योंकि बच्चों को मशीनी शिक्षा दी जा रही है और व्याहारिक रूप से उन्हें और छोटा बनाया जा रहा है।
भविष्य में हम वैज्ञानिक तौर पर उन्नति तो निश्चित तौर पर कर लेंगे लेकीन यदि हमने अपने बच्चों को ये आधारभूत ज्ञान नहीं दिया उनका व्यवहार आचरण अच्छा नहीं बनाया तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं कर पायेगी।
इस दिशा में सोचिएगा जरूर और सोच समझ कर फैसला लीजिएगा।

By Monika Bhat